Friday, 14 August 2015

तू ही तू

तू ही तू



एक  तेरी  ईंट  लेकर,
एक  मेरी  ईंट  लेकर,
जन-जन से ईंट लेकर,
यह महल जा बना  है।


कुछ तूने  कोशिशें  कीं,
कुछ मैने  कोशिशें  कीं,
जन-जन ने कोशिशें  कीं,
तब शिखर ध्वज तना है।


किस किस ने क्या किया है?
किस किस ने क्या दिया है?
किस किस का श्रम जुड़ा है?
किस किस की  आरजू  है?


पर   कैसे   इस    कहानी  
पर   फिर   गया  है  पानी?
अब  हर   किसी  जुवाँ पर  
बस  सिर्फ  तू   ही  तू  है।

Friday, 20 February 2015

मांझी


धुंध में, रात में, या कि बरसात में,
आंधियों में, सहज नाव खेता रहा।
चाहे डर हो, भंवर हो, या कोई कहर
मेरा मांझी सदा साथ देता रहा।

              घोर प्रारब्ध के जाल में था फंसा,
              भागता भी अगर तो कहाँ भागता।
              आँख रोती रही, बुद्धि सोती रही,
              वो लहर दर लहर था रहा जागता।

गफलतों से लुटा, मुश्किलों से पिटा,
हसरतें आग दिल में लगातीं रहीं;
उसकी मुसकान वीणा बजाती रही
मेरे कानों को अमृत पिलाती रही।

                      मेरी कस्ती को उसका सहारा मिला,
               डूबते को नदी का किनारा मिला।
               शोर घनघोर में, पीर पुरजोर में,
               शांत संजीवनी का पिटारा मिला।

लोग आते रहे, लोग जाते रहे,
लोग बातें बहुत सी बनाते रहे,
ज्ञान की म्यान से खींच कर युक्तियाँ-
लोग रस्सी से लड़ना सिखाते रहे।

               लड़खड़ाया अगर, लोग हँसने लगे;
               गर गिरा, लोग खिल्ली उड़ाने लगे।
               आंख फेरी जरा वक्त ने, भाग्य ने,
               लोग जख्मों में मिर्ची लगाने लगे।

घन घुमड़ते रहे, केश झड़ते रहे,
उम्र ढलती रही, राह खलती रही,
मेरे मांझी के रहमोकरम पर टिकी
शम्मा जलती रही नाव चलती रही।

              देखता पंथ की उग्र ढालान जब-
              कितनी जोखिम भरी हर कदम राह थी।
              ये मुझे लग रहा, उसको था सब पता,
              अब तो विश्वास है- उसको परवाह थी।

अब न चिंता मुझे घूरती धार की,
बीच मझधार की, ध्वस्त पतवार की,
मेरे माझी की बाहें सलामत रहें,

क्यों करूं मैं फिकर आर की पार की?

Sunday, 8 February 2015

उदबोधन


                           हार हुई तो  बढ़  इसका  सत्कार  करो
                          भिड़ने वाले ही  तो  इसको  पाते  हैं ।
                        जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे
                        हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते  हैं।

 हार  जीत तो  भिड़ने  का  परिणाम है,
इसमें  भाई  रोने धोने का क्या काम है?
गिर कर ही उठने की ताकत मिलती  है
क्रियाशील  के  आगे  कहाँ  विराम है?

                         चोटें  तो  लगती  ही  रहती  हैं  साथी
                         जब  बढ़ने  वाले आगे    कदम  बढ़ाते हैं,
                          गिरा हुआ जो  स्वयं  गिरेगा  क्या  आगे
                          हाँ, कभी-कभी  उठने वाले गिर जाते हैं

 भिड़ने वालों  की  यह  धैर्य परीक्षा  है,
हार समझ कर इसे न धोखा खा जाना।
ठोकरें  राह को  परिभाषित  करती  है,
सरल नहीं होता  मंजिल  का पा जाना।

                       अवरोधों  का डर  न  उनको  होता  है
                       जो  आगे  बढ़ना अपना लक्ष्य बनाते  हैं
                       जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे
                       हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते  हैं।

समय  बड़ा ही  निर्मम  होता है साथी,
दया दिखाना इसे न बिलकुल भाता है।
छुयीमुयी  के  दुर्वल  पत्तों  से   पूछो
जिन पर भी पतझड़ का दौरा आता है।

                         उन गांधी की भी छाती में बिधती गोली
                        जो सत्य अहिंसा प्रेम शांति सिखलाते हैं
                        जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे

                        हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं।

Wednesday, 28 January 2015

नफ़रत

प्यार नहीं सौम्य!
नफ़रत.
तुम मुझसे नफ़रत करो!

अगर तुम प्यार करोगे,
तो
तुम्हारे साथ होने का भरम होगा,
अपनी सामर्थ्य पर भरोसा
उत्तरोत्तर कम होगा,
हाथ
हर वक्त अन्य हाथों को तरसेंगे,
परिणामतः निराशा होगी
और आँखों से मेघ बरसेंगे.
जीवन की जंग में
अपनी लड़ाई जब खुद न लड़ पाऊँगा,
जब तुम न साथ होओगे,
तो क्या करूंगा,
कहाँ जाऊंगा?
प्यार में विछोह की
संभावना परम होगी,
और अनिवार्यतः
आसरे की उम्मीदें
हर दम बेदम होंगी,
जो  दिल भरा होगा
तेरे प्यार के आश्वासन से,
कैसे निपट पाएगा
उस दुरूह  एकाकीपन से?

पर तुम्हारी नफ़रत
चुनौती देगी लड़ने की
घने दुर्गम बनों में
मार्ग बना चलने की
पीछे मुड़कर देखने की
नौबत न आएगी तब,
अपितु हिम्मत होगी -
आगे ही आगे बढ़ने की.

ये प्यार तो कछुये  का सिर है,
पता नहीं कब बाहर
कब अन्दर,
पर नफ़रत तो हर हाल नफ़रत है,
मुंह छिपाना इसकी न फितरत है,
जो कुछ है
खुला खेल है
छाती ठोक कर,
और डंके की चोट पर.
न कोई चोंचला,
न ही दिखावा,
हर समय है
बस दहकता हुआ लावा.
इसलिए
नफ़रत है  हर हाल पूरी खरी,
हर वक़्त चेतावनी भरी.

हजारों गिले-शिकवे,
लाखों शिकायतें,
अशंख्य अपेक्षाएं,
ढेरों उम्मीदें,
सतत परीक्षाएं,
ये ही तो प्यार की किताब के सफे हैं,
जिन पर उकरे
ये प्यार के अजीव फलसफे हैं.
मुझे नहीं चाहिए ऐसा प्यार.

प्यार में-
वियोग है,
विछोह है,
धोका है,
द्रोह-विद्रोह है,
प्रायः परकीयता है,
रकीब होने की
सुदृढ़ संभावना है,
जो अपने आप में एक दुखती कथा है,
प्यार में उलाहने हैं,
चुभते हुए ताने हैं,
तारे तोड़ लाने के वादे हैं,
या मायावी तराने हैं,
बिंदास प्रलोभन हैं,
और अक्सर
टूटे हुए दिल हैं
और बेचैन मन हैं.

प्यार सम्मोहन है,
सुध-बुध विसराता है,
अपनी मन-मानी कराता है
करके अचेत,
जब कि नफ़रत
सिर पर तना डंडा है,
चेतावनी का झंडा है,
सदा करता सचेत.

प्यार को तो
हर पल कुर्बानियों की आग में तपना है,
तिल-तिल कर पल छिन जीना है
मरना है,
और अंततः
नफ़रत में हि बदलना है,
जबकि
नफ़रत का रूप
सदा एक हि रहता है-
नफ़रत.

इसलिए सौम्य!
तुम प्यार का बेहूदा भरम न भरो,
अभी से नफ़रत करो.

प्यार तो आरंभिक चोंचला है,
प्यार भावनात्मक ढकोसला है,
अहं से संपोषित दुनिया में-
प्यार बस दिखावा है,
स्वार्थी छलावा है,
खोखला है.

जब कि नफ़रत-
लौकिकता के अंत का सत्य है,
और प्यार का ही
परिवर्तित,
परिष्कृत रूप है,
और प्रायः
हर प्यार का अंतिम लक्ष्य है.

नफरत अस्तित्व की ज़रूरत है.
गौर से देखो तो पाओ गे-
कि हर दर्पण में प्रतिविम्बित
नफ़रत ही स्पर्धा की सूरत है,
इसलिए सौम्य!
तुम अंत का यथार्थ चुनो,
और प्यार का अभिनय छोड़कर
नफरत के तानें बुनो.

प्यार तो छलिया है,
धोका है,
दिखावों-आडम्बरों का खोका है,
मन का यह बड़पेटू बच्चा-
हर समय भूखा ही रहता है.
ऐसा खेत
जो भरपूर खाद पानी मिलने पर भी,
बंजर ही रहता है
सूखा ही रहता है.

प्यार तो भावना का गिरगिट है,
पल-पल रंग बदलता  है,
प्यार एक मोहक छलावा है
जो रूप बदल-बदल कर छलता है.

प्यार ऐसा परजीवी है
जो खुद पर नहीं,
अन्य पर जीता है,
और चटकारे लेते हुए
एक-दूजे का खून पीता है.

अस्तु सौम्य!
मत करो ढोंग इस प्यार का.

नफ़रत की राह सीधी है,
नफ़रत की बात सच्ची है,
नफ़रत में न कोई इच्छा है,
और न ही कोई
अपेक्षा-परीक्षा है.

इसलिए सौम्य,
तुम मुझसे नफ़रत करो,
फिर तुम्हारी राह तुम्हारी होगी,
और मेरी
सिर्फ मेरी.
मैं अपने में खुश रहूँगा,
तुम अपने में,
न किसी का दिल टूटेगा,
न ही भाग्य फूटेगा,
न झंझट,
न झमेला,
बस नफ़रत
सौम्य,
नफ़रत,