Friday, 28 June 2013

उद्बोधन हार हुई तो बढ़ इसका सत्कार करो A Poem of Encouragement




उद्बोधन




हार हुई तो बढ़ इसका सत्कार करो
भिड़ने वाले ही तो इसको पाते हैं .
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


हार जीत  तो भिड़ने का  परिणाम है,
इसमें  भई रोने धोने का क्या काम है.
गिर कर ही उठने की ताकत मिलती है
क्रियाशील  के  आगे  कहाँ  विराम है.

चोटें तो  लगती ही रहती हैं  साथी
जब बढ़ने वाले आगे कदम बढ़ाते हैं.
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


भिड़ने वालों की यह धैर्य परीक्षा है,
हार समझ कर इसे न धोका खा जाना.
ठोकरें राह को परिभाषित करती हैं,
सरल नहीं होता मंजिल का पाजाना.

अवरोधों  का  डर  न  उनको  होता  है,
जो आगे बढ़ना अपना लक्ष्य बनाते हैं.
            जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


समय बड़ा ही  निर्मम  होता है साथी
दया दिखाना इसे न बिलकुल भाता है
छुईमुई   के   दुर्बल   पत्तों  से   पूछो -
जिन पर भी पतझड़ का मौसम आता है

               उन गाँधी की भी छाती में बिधती  गोली
               जो सत्य अहिंसा प्रेम शांति सिखलाते हैं
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी  उठने वाले  गिर  जाते हैं.


                        यदुराज सिंह बैस







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