दीपावली को एक सैनिक का सलाम
(एक पूर्ण सैनिक के रूप में १९६६ की
दीवाली मेरी पहली दीवाली थी. इसे मैं घर पर मनाना चाहता था, पर छुट्टी नहीं मिल
सकी. नेफा (N.E.F.A.) में तनाव बढ़ गया था. तब इस कविता द्वारा मैंने अपने पिता
जी को दीपावली की शुभ कामनाएं भेजी थीं.)
आज नहीं, कल नहीं, अपितु सारे जीवन
में छाई इसके मधुराधर की लाली हो,
दीप-दीप में सौख्य दीप्ति दीपित करके
हे देव! आपको शुभ आगम दीवाली हो.
द्वार-द्वार
पर जला दीपकों की माला,
कूप
तड़ाग मरघटी तक चमका देना,
और अंत
में नाम हमारा लेकर भी,
इस नभ
में बस दो किरणे दमका देना.
इस ब्रह्मपुत्र की लहर-लहर बन किरण
ज्योति
इन घने बनो के तरुण प्रसूनो की लाली,
इस हिमगिरि के कन्दरा श्रंग महका देगी,
बन जाए गी बस वही हमारी दीवाली.
यह है
विराट का द्वार यहाँ पर शांत मलय
भी
चट्टानों से टकरा करता सिंह नाद,
यह है
नेफा की भूमि जहां हरियाली भी
अपने
पातो पर रखती है रक्तिम प्रमाद.
ये दूर-दूर तक गगन गम्य उत्तुंग
श्रंग,
ये मलय, विहंसते फूल और अमुखर कलियाँ,
यह शोणित बिंदु प्रलिप्त स्वेत हिम
अमर चूर
बस यही झलकती भारत की दीपावलियाँ.
है
ऐक-ऐक की विध्वंसक नलियाँ नीचे
जाग्रत
राडार हरदम, ऊपर गरजे हंटर,
यह आग
उगलती चली मिसाइल है फिर भी
हैं गरज
रहे बेधड़क नेट तूफानी वर.
इन वैम्पायर मिस्टीयर और कैनबरा में
है धुआं धड़ाकों की ज्वलंत आभा राजी
वायारलेसों के इंगित पर जो भवक उठे
बस ऎसी है हम लोगों की अतिशवाजी.
ऊपर-नीचे
दायें-वाएं आगे-पीछे,
उठते-गिरते
एरोबेटिक करते विमान
हैं
आसमान की छाती पर चिंघाड़ रहे
लेकर
अंतर में नन्ही सी बस एक जान.
है चौतरफा छाया अनंत तक गगन एक
बस साथ देश का प्रेम, कर्म, दो-एक याद
कुछ और साथ लेकर आए हैं ये अपने
आदेश, कफ़न, स्नेह और आशीर्वाद.
हर ओर
सुरक्षा दीपक में दे प्राण-स्नेह
अपनी
छोटी सी आयु बना बाती डाली,
जीवन की
आहुति देने को चल पड़े आज
ये वीर
जलाने भारत माँ की दीवाली.
ये नहीं अंधेरी रात दीपकों से सज्जित
यह नहीं मात्र त्यौहार मनाये जाने को
यह है अतीत का गर्व, देश का भाल तिलक
ये दीप हार माँ को पहिनाए जाने को.
ये हार
कि जिसके दीप-दीप में ज्योति जली
माँ के
गुदड़ी के लालों के बलिदानों से,
यह लाली
लाख सुहाग समर्पण की प्रतीक
ये बनी
बातियाँ हैं राखी के तानो से.
इनमे खुशिओं का मोद, विफलता का प्रलाप
इनमें जलने की शक्ति, जलाने की
क्षमता,
इनके अंतर में स्नेह दीप्ति के साथ
जलन
इनके दीपन में राह दिखाने की ममता.
इनकी लौ
में ऊपर उठने की अमिट चाह
पर
इधर-उधर नीचे भी कर देते प्रकाश,
बस यही
हमारे भारत का उत्तम प्रतीक
बस यही
हमारी एक भविष्यत् की पिपास.
बस यही की आंधी आने पर दे बुझा किन्तु
जब तक जीवन है रवि सी नित्य कला
देंगे,
जो करें प्रकाशित विश्व हरें औरों का
तम
हम बुझने से पहले लाखों दीप जला
देंगे.
बस यही
हमारी दीवाली का है परिचय
इसको इक
रश्म समझ कर ही न मना लेना,
पर शश्य
श्यामला भारत माँ का समझ गर्व
इसके
स्वागत में दिल के द्वार सजा लेना.
हम दूर, बहुत ही दूर, हिमालय में बैठे
अपने कर्त्तव्य प्रदीप असंख्य बना
लेंगे,
हम सब को भूल मनावें दीपावली आप,
हम भी दीवाली अपनी यहाँ मना लेंगे.
हों आप
सुखी, हो लोक सुखी, हों सुखी सभी,
शुभ सब
को सब की मुश्कानों की लाली हो,
हर
दीप-दीप में सौख्य दीप्ति जल उठे स्वयं,
हे देव!
आपको शुभ आगम दीवाली हो.
यदुराज सिंह बैस.
(कविता लिखने की तिथि : १९ अक्टूबर
१९६६)
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