नया
मोड़
जिंदगी
में फिर नई रौनक जगी है.
हर समय छाई निराशा
की घनाली
जिंदगी में फिर
नई रौनक जगी है.
होठ जिन पर मरण की ही बोलियाँ थीं,
अब वरण की लगे हैं कहने कहानी.
हर दिशा में लुटी कुंठित भावना भी,
चहक उट्ठी समय से पा कर जवानी.
भुला कर के वेदना
सदियों पुरानी
नए सपनों में
पुनः आँखें लगी हैं
जिंदगी में फिर
नई रौनक जगी है.
छली चाहत भी न आहत कर सकी है,
डगमगाए कदम क्यों कि संभल चुके हैं.
ह्रदय में विश्वास का दरिया बहाने-
स्नेह-घन मन में बरसने चल चुके हैं.
नयन में फिर छा
गए अभिनव नज़ारे,
इन्द्रधनुषी रंगों
नें दुनिया रंगी है.
जिंदगी में फिर
नई रौनक जगी है.
हर चमन को एक दिन पतझड़ सताता,
छोड़ जाते पीत-पात प्रसून सारे;
भूल कर बरवादियों के वे नज़ारे,
क्यों न महकें फिर वही उपवन हमारे?
चौंक कर उड़ जाएगी
सारी खुमारी,
स्वप्न में आभास
की गोली दगी है.
जिंदगी में फिर
नई रौनक जगी है.
यदुराज सिंह बैस
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