भैया
मेरे क्यों तुम इतने दूर हो?
मेरी
सखियाँ राग-मल्हारें गा रहीं.
झूम-झूम
कर खुशियाँ आज मना रहीं.
घर-घर
में राखी पर राखी डोलती.
हो
विभोर बहिनें भाई से बोलतीं-
जोड़
रहीं हूँ इस राखी की डोर से,
हो
कर बड़े नित्य तुम फलना-फूलना,
पर
मैं बहिन अभागिन आज उदास हूँ,
राखी
ले कर जो न तुम्हारे पास हूँ.
क्यों
न यहाँ आए हो? क्या मजबूर हो?
मेरे
भैया क्यों तुम इतने दूर हो?
मातृभूमि
के सेवक सजग जवान हो.
आज
नहीं तुम इस घर के हो रह रहे,

अपितु
कोटि धामों के हित दुःख सह रहे,
एक बहिन को छोड़ यहाँ से ज्यों गए,
कोटि-कोटि बहिनों के भाई हो गए.
आज करोड़ों बहिनें लेकर राखियाँ,
तुम जैसे भाई की देतीं साखियाँ.
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