Friday, 26 July 2013

भैया मेरे क्यों तुम इतने दूर हो?




मेरे भैया


भैया मेरे क्यों तुम इतने दूर हो?

मेरी सखियाँ राग-मल्हारें गा रहीं.
झूम-झूम कर खुशियाँ आज मना रहीं.
घर-घर में राखी पर राखी डोलती.
हो विभोर बहिनें भाई से बोलतीं-

भैया तुमको आज हृदय के छोर से,
जोड़ रहीं हूँ इस राखी की डोर से,
हो कर बड़े नित्य तुम फलना-फूलना,

और बहिन को भी न कभी तुम भूलना,
पर मैं बहिन अभागिन आज उदास हूँ,
राखी ले कर जो न तुम्हारे पास हूँ.
क्यों न यहाँ आए हो? क्या मजबूर हो?
मेरे भैया क्यों तुम इतने दूर हो?


जान गई तुम भारत के रखवान हो.
मातृभूमि के सेवक सजग जवान हो.
आज नहीं तुम इस घर के हो रह रहे,

अपितु कोटि धामों के हित दुःख सह रहे,

एक बहिन को छोड़ यहाँ से ज्यों गए,
कोटि-कोटि बहिनों के भाई हो गए.
आज करोड़ों बहिनें लेकर राखियाँ,
तुम जैसे भाई की देतीं साखियाँ.

ऐसे लाखों के भाई को ताक से,
भेज रही हूँ मैं भी राखी डाक से.
बाँध सभी की राखी जब अवकाश हो,
बंधवा लेना इस राखी के तार को.
केवल राखी ही ना बाँधी हाथ में,
भेज रही हूँ लाख दुआएं साथ में.


मेरे भैया आज देश के शूर हो.


शोक नहीं तुम चाहे जितने दूर हो.





यदुराज सिंह बैस.












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