रक्त से धोया हुआ अनुराग होगा,
वक्ष पर सीमांत जय का दाग होगा.
दृष्टि में होगा जयी भारत हमारा,
और अधरों पर अमर जय-हिन्द नारा.
भाल पर दैदीप्त नेफा की कहानी,
हड्डियों तक में धँसी हिन्दोस्तानी.
और लोहित भूमि का सन्देश लेकर-
जब कभी आऊँगा मैं अवकाश ले घर,
खोज कर तुमको मिलूंगा जहाँ होगे,
देखता तब तुम मुझे कैसे मिलोगे?
दूर होगे खून के धब्बों से डर के.
या गले से आ मिलोगे दौड़ कर के.
दर्द के अंदाज़ दिल के पार होंगे,
या की मेरे घाव भी श्रंगार होंगे.
युद्ध की अटखेलियाँ क्या खल उठेंगी?
गर्व से दीवालियाँ या जल उठेंगी?
देखता तब कौन सा उपचार दोगे?
त्याग दोगे या कि मुझको प्यार दोगे?
यदुराज सिंह बैस
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