Thursday, 25 July 2013

प्यार की स्वीकृति

स्वीकृति



                                    प्यार की स्वीकृति पाकर कहीं
भाग्य ने ली अंगड़ाई है.
किसी के मन के आँगन में
बज उठी ज्यों शहनाई है.


नूपुरों ने दी है आवाज,
चहक उट्ठा प्राणों का साज,
गमकते गज़रे, गंधित केश,
ठुमकते नयन, नशे में लाज.

नयन में कजरा रजनी भरे,
हाथ पर मेंहदी ऊषा धरे,
तुम्हारा करने को श्रृंगार
दिशाएँ सज कर आई हैं.


आज अँखियाँ गाती हैं क्यों?
लजाती मुसकाती हैं क्यों?
देखने की आकुलता लिए
ये आँखें शर्माती हैं क्यों?

यही तो हैं वीणा के तार,
कि जिनकी तू मधुरिम झंकार,
पंथ पर करने नीर फुहार
देख बदरी घहराई है.


लाज का रहा न अब कुछ काम,
किसी का होठों पर है नाम,
कि जिनकी बरसों से थे, अरी,
मेघ लाया करते पैगाम.

                                    भगा दे परदों का प्रतिहार,
छोड़ दे बंधक बंदनवार,
दौड़ कर उनका स्वागत करे
कि जिनकी तू पर्छईं है.


क्यों न अब दोनों खेलें खेल?
स्वर्ग का धरती से हो मेल,
प्यार की रीति गई है जीत,
ढहा कर पाबंदी की जेल.

अब न रुक पाएगा यह ज्वार,
न बंधन स्वीकारे गा प्यार,
श्रजन ने मन का कर श्रृंगार
नेह की जयोति जलाई है.


चूर कर दिन का प्रखर गरूर,
गोद में भर के मोतीचूर,
उमंगों के रँग से भरपूर
लुटाती संध्या है सिन्दूर.

                                    हठीली दुनिया के उस पार
धार में मिल जाएगी धार.
चुम्बनों की भाषा में मौन
प्रणय ने गाथा गई है.


यदुराज सिंह बैस


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