Sunday, 8 February 2015

उदबोधन


                           हार हुई तो  बढ़  इसका  सत्कार  करो
                          भिड़ने वाले ही  तो  इसको  पाते  हैं ।
                        जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे
                        हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते  हैं।

 हार  जीत तो  भिड़ने  का  परिणाम है,
इसमें  भाई  रोने धोने का क्या काम है?
गिर कर ही उठने की ताकत मिलती  है
क्रियाशील  के  आगे  कहाँ  विराम है?

                         चोटें  तो  लगती  ही  रहती  हैं  साथी
                         जब  बढ़ने  वाले आगे    कदम  बढ़ाते हैं,
                          गिरा हुआ जो  स्वयं  गिरेगा  क्या  आगे
                          हाँ, कभी-कभी  उठने वाले गिर जाते हैं

 भिड़ने वालों  की  यह  धैर्य परीक्षा  है,
हार समझ कर इसे न धोखा खा जाना।
ठोकरें  राह को  परिभाषित  करती  है,
सरल नहीं होता  मंजिल  का पा जाना।

                       अवरोधों  का डर  न  उनको  होता  है
                       जो  आगे  बढ़ना अपना लक्ष्य बनाते  हैं
                       जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे
                       हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते  हैं।

समय  बड़ा ही  निर्मम  होता है साथी,
दया दिखाना इसे न बिलकुल भाता है।
छुयीमुयी  के  दुर्वल  पत्तों  से   पूछो
जिन पर भी पतझड़ का दौरा आता है।

                         उन गांधी की भी छाती में बिधती गोली
                        जो सत्य अहिंसा प्रेम शांति सिखलाते हैं
                        जो गिरा हुआ है स्वयं गिरेगा क्या आगे

                        हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं।

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