Tuesday, 18 June 2013

तहजीब

तहजीब



मार्गों और मीलों की
गिद्ध और चीलों की
अभियोगों-वकीलों की
यह मिश्रित तहजीब -
जिसमें
अभिशप्त टीलों का
ताबूतों-कीलों का
हठी दलीलों का
विशेष महत्व है.

चारों ओर
भयानक शोर ही शोर है
चोरों के हाथों में ज़ोर है
ईमान की धार कमजोर है
धर्म के नाम पर दंगे
सौभाग्य के फ़रिश्ते नंगे
बगिया के माली
करते सुगंध की दलाली
सीधी-सादी जनता की बदहाली
जेब भी खाली
और पेट भी खाली
मगर भ्रष्टों के घर
हर दिन होली
हर रात दीवाली.

यह खुशहाली भी अजीव है;
ऐसी यह मिश्रित तहजीव है

हर गली में
हर सड़क पर
हर बाज़ार में
जनता दरबार में
सरकार में
लोंगों का
अजीबोगरीब रोगों का
भोग्य-अभोग्य भोगों का
ताँता लगा है
हम किसके ख़िलाफ लड़ जाहे हैं?
और इतना शोर मचाकर
हम किसे पकड़ रहे हैं?
आखिर यह दौड़
किधर जा रही है?
यह कैसी मानसिकता
जो न रानी है
न चेरी है
न तेरी है
न मेरी है
न कोई इससे दूर है
न कोई इसके पास है
आखिर सब क्या है?
कोई तो बताये-
यह कैसी तहजीब है?


यदुराज सिंह बैस






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