याद
टूट न जाएँ, इसके डर
से
सारे तारे जागे,
और चांदनी सिमट सज गई किसी द्वार के आगे.
धमक ढोल की लूट ले गई गमक चमन की ऐसे-
मुरझाने को विवश होगए शापित फूल
अभागे.
किसी रूढि के अट्टहास से
सम्मोहित अभिमंत्रित,
नागफनी पर कली
एक मुरझाई सारी रात.
क्योंकि कहीं पर
बजे ढोल शहनाई सारी रात.
शंकित होकर सूख गया शोषित आँखों का पानी,
पीड़ा बन कर गरज उठी अरमानों की मनमानी.
करी आईने में
प्रतिविम्वित सूरत ने नादानी-
धुआँ बन गई जले पृष्ठ पर उकरी एक कहानी.
कहीं दूर, बंजर धरती पर, बंजारे
ने झुक कर,
सघन अँधेरे में खोजी
परछाई सारी रात.
क्योंकि कहीं पर बजे ढोल शहनाई सारी रात.
यादों की सौगात रही देती विजली के झटके,
बहुत हटाया, पर न गया मन उन यादों से हटके.
विस्मित हो कर चालित चेतना स्तंभित भौंचक्की,
दौड़ लगाती रही साथ में
पनघट के, मरघट के.
सूने भावों को पिघलाने, कंचन खरा बनाने-
एक बाबारे ने भट्टी सुलगाई
सारी रात.
क्योंकि कहीं पर बजे ढोल शहनाई
सारी रात.
यदुराज सिंह बैस
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