मित्र
मेरे
प्रिय मित्र!
प्यार
का आधा अधूरा चित्र,
तुम्हारी
तरह-
मैंने
भी बनाया था,
और जीवन
की दीवाल पर
सजाने
के बजाय,
उसे उसके
अन्दर चिनाया था.
फर्क
सिर्फ इतना रह गया,
कि ऎसी
दीवालें जोड़ जोड़ कर-
तुमने
जहाँ महल बना लिया,
वहीँ
मैं
उस चिनी
हुई दीवाल के साथ,
पूरी
तरह ध्वस्त हो गया,
ढह गया.
तुम्हारी
निर्लिप्तता
तुम्हारी
शक्ति बन गई,
शान बन
गई,
वहीं
मेरी घायल भावुकता
लहूलुहान
बन गई,
निर्जीब
आहों के बसेरे के लिए
सूनसान
कब्रिस्तान बन गई.
यदुराज
सिंह बैस
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