है कोई
जो मेरे पास आए?
मेरे अभिषप्त हाथों से खिसक रही,
हवा के झोंकों से बुझ रही,
यह मशाल उठाए,
उसे फिर जलाए,
और आगे ले जाए?
है कहीं कोई?
चारों ओर
हो रहा कानफोडू शोर,
अँधेरा ही अँधेरा है.
रोशनी की हर किरण को
घने कुहासे ने घेरा है.
एक आंधी चल रही है.
उखड़ी हुई कब्रों से
सड़ांध निकल रही है.
और
भीड़ भरे चौराहे पर
विनय और शील की
होली जल रही है.
ऐसे में
क्या कहीं कोई है,
जो मेरे पास आए?
मेरी गाँठ में बंधे
इस पारस को चुराए?
और इस अँधेरे के उस पार जाकर
लोहे के दिलों को
सोने का बनाए?
है कोई?
यदुराज सिंह बैस