Tuesday, 24 June 2014

कोई है?

है कोई
जो मेरे पास आए?
मेरे अभिषप्त हाथों से खिसक रही,
हवा के झोंकों से बुझ रही,
यह मशाल उठाए,
उसे फिर जलाए,
और आगे ले जाए?
है कहीं कोई?

चारों ओर
हो रहा कानफोडू शोर,
अँधेरा ही अँधेरा है.
रोशनी की हर किरण को
घने कुहासे ने घेरा है.
एक आंधी चल रही है.
उखड़ी हुई कब्रों से
सड़ांध निकल रही है.
और
भीड़ भरे चौराहे पर
विनय और शील की
होली जल रही है.

ऐसे में
क्या कहीं कोई है,
जो मेरे पास आए?
मेरी गाँठ में बंधे
इस पारस को चुराए?
और इस अँधेरे के उस पार जाकर
लोहे के दिलों को
सोने का बनाए?

है कोई?


यदुराज सिंह बैस

Tuesday, 17 June 2014

कैसे मिलोगे?



रक्त से धोया हुआ अनुराग होगा,
वक्ष पर सीमांत जय का दाग होगा.

दृष्टि में होगा जयी भारत हमारा,
और अधरों पर अमर जय-हिन्द नारा.

भाल पर दैदीप्त नेफा की कहानी,
हड्डियों तक में धँसी हिन्दोस्तानी.

और लोहित भूमि का सन्देश लेकर-
जब कभी आऊँगा मैं अवकाश ले घर,

खोज कर तुमको मिलूंगा जहाँ होगे,
देखता तब तुम मुझे कैसे मिलोगे?

दूर होगे खून के धब्बों से डर के.
या गले से आ मिलोगे दौड़ कर के.

दर्द के एहसास दिल के पार होंगे,
या की मेरे घाव भी श्रंगार होंगे.

युद्ध की अटखेलियाँ क्या खल उठेंगी?
गर्व से दीवालियाँ या जल उठेंगी?

देखता तब कौन सा उपचार दोगे?
प्यार दोगे या कि तब दुत्कार दोगे?





यदुराज सिंह बैस

सुई और भाला

 सुई और भाला



उसने भोंका भाला,
सह्य था,
सह गया,
मैनें हँस कर टाला.
उससे मुझे इसी की थी आशा,
फिर किस बात का करता तमाशा?
उसकी प्रतिशोधी भाले की धार,
न सकी मुझे मार,
मैं फूलता-फलता गया.
न रुका,
न झुका,
बस, मंजिल की ओर चलता गया.

मगर तुमने-
भाला नहीं
एक छोटी सी सुई चुभोई,
असह्य पीड़ा हुई,
आत्मा रोई.
सारा शरीर निढाल हो गया,
जैसे सब कुछ जाता रहा,
बुरा हाल हो गया.

दुश्मन का भाला
जख्मी तो कर गया,
पर दुश्मनी का ऋण उतर गया.
पर तुम्हारी सुई -
अत्यंत घातक साबित हुई,
रोम-रोम जल उठा,
दिल-दिमाक गल उठा,
आँखें सूनी हो गईं,
भावनाएं खो गईं,
दोनों होठ सिल गए,
और तुम 
भले नजदीक रहे
पर बहुत दूर निकल गए.


यदुराज सिंह बैस

Thursday, 12 June 2014

नया मोड़


जिंदगी में फिर नई रौनक जगी है.


हर समय छाई निराशा की घनाली
त्याग कर के नयन औचक सी भगी है.
जिंदगी में फिर नई रौनक जगी है.


होठ जिन पर मरण की ही बोलियाँ थीं,
अब वरण की लगे हैं कहने कहानी.
हर दिशा में लुटी कुंठित भावना भी,
चहक उट्ठी समय से पा कर जवानी.

भुला कर के वेदना सदियों पुरानी
नए सपनों में पुनः आँखें लगी हैं
जिंदगी में फिर नई रौनक जगी है.


छली चाहत भी न आहत कर सकी है,
डगमगाए कदम क्यों कि संभल चुके हैं.
ह्रदय में विश्वास का दरिया बहाने-
स्नेह-घन मन में बरसने चल चुके हैं.

नयन में फिर छा गए अभिनव नज़ारे,
इन्द्रधनुषी रंगों नें दुनिया रंगी है.
जिंदगी में फिर नई रौनक जगी है.


हर चमन को एक दिन पतझड़ सताता,
छोड़ जाते पीत-पात प्रसून सारे;
भूल कर बरवादियों के वे नज़ारे,
क्यों न महकें फिर वही उपवन हमारे?

चौंक कर उड़ जाएगी सारी खुमारी,
स्वप्न में आभास की गोली दगी है.
जिंदगी में फिर नई रौनक जगी है.



                  यदुराज सिंह बैस

Wednesday, 11 June 2014

जो प्यार के लिए बना है- सड़ रहा है.

विडम्बना


जो प्यार के लिए बना है-
सड़ रहा है.
जो नफ़रत से सना है-
अकड़ रहा है.
जिसे गर्म होना था-
ठंडा है,
लोभ के हाथ में तोप है,
लाड़ के सिर पर डंडा है.
जहाँ जोश चाहिए-
वहाँ मुर्दनी छाई है,
और जहाँ होश चाहिए-
वहाँ मति बौराई है.

उनकी बेरुखी को
बड़े जतन से पाला जाए,
और मेरी अपरिमित चाहत को-
अगले जनम के लिए टाला जाए,
यह कैसी विडम्बना है?


यदुराज सिंह बैस

अब हर किसी जुबाँ पर बस सिर्फ तू हि तू है!

तू



एक तेरी ईंट लेकर,
एक मेरी ईंट लेकर,
जन जन से ईंट लेकर
यह महल जा बना है;

कुछ तू ने कोशिशें कीं,
कुछ मैं ने कोशिशें कीं,
जन जन ने कोशिशें कीं
तब शिखर ध्वज तना है.

किस किस ने क्या किया है?
किस किस ने क्या दिया है?
किस किस का श्रम जुड़ा है?
किस किस की आरजू है?

पर जैसे इस कहानी
पर फिर गया है पानी
अब हर किसी जुबाँ पर
बस सिर्फ तू हि तू है!


यदुराज सिंह बैस

Wednesday, 15 January 2014

Hindi Poems That Are Unknown To All: कैसे मिलोगे?

Hindi Poems That Are Unknown To All: कैसे मिलोगे?: कैसे मिलोगे ? रक्त से  धोया हुआ  अनुराग  होगा। वक्ष पर सीमान्त जय का दाग  होगा। दृष्टि में  होगा  जयी  भारत  हमारा , औ...

कैसे मिलोगे?

कैसे मिलोगे?




रक्त से  धोया हुआ  अनुराग  होगा।
वक्ष पर सीमान्त जय का दाग  होगा।

दृष्टि में  होगा  जयी  भारत  हमारा,
और अधरों पर अमर जय-हिंद नारा।

भाल पर दैदीप्त नेफा  की   कहानी,
हड्डियों  तक  में  धँसीं  हिन्दोस्तानी,

और  लोहित  भूमि का संदेश लेकर,
जब कभी आऊँगा मैं अवकाश ले घर,

खोज कर तुमको मिलूंगा जहाँ   होगे,
देखता तब तुम  मुझे  कैसे  मिलोगे?



दूर  होगे  खून के  धब्बों  से डर के,
या गले से आ मिलो गे  दौड़ कर के,

दर्द के अंदाज  दिल  के  पार  होंगे?
या कि मेरे घाव  तव  श्रंगार   होंगे?

युद्ध की अटखेलियाँ क्या खल उठेंगी?
गर्व  से  दीवालियाँ  या  जल उठेंगी?

देखता  तब  कौन सा  उपचार  दोगे?
त्याग दोगे या कि मुझको प्यार  दोगे?



यदुराज

कौन हो ?

कौन हो ?

 
हृदय तल  पर
गुदगुदा    कर,
विकल निज में-
रहे    डर-डर।

हर दिशा का
ले   पताका
जो मौन  हो
तुम कौन हो?

पवन सन-सन
बहे  हर   मन
गगन बन गया
किरन  उपवन  ।

खिलीं सब कलीं
चले   गा  अली
पंथ   हर  गली
उषा  है   भली।

कि जिसके लिए
जले  हैं   दिये
मिटाने     अहं
शलभ चल दिए।

समय को बांध
गगन को लांघ
जो   मौन  हो,
तुम  कौन  हो?



यदुराज