कर्ज
ये रंग के हजार दिन,
उमंग के हजार दिन,
ये भंग की तरंग में-
जिये हुए हजार दिन;
ये दिन बहुत सताएंगे,
हँसाएंगे, रुलाएंगे।
जो दिन ये गुजर जाएंगे।
न लौट कभी पाएंगे।।
अमीर के, गरीब के,
जो खेल थे नसीब के
न कह सके न सुन सके
थे फलसफे करीब के।
जो हो चुका सो हो चुका।
‘विगत’ स्वरूप खो चुका।
जो आ रहा, बुला रहा,
गले उसे लगाएंगे।। जो दिन ये गुजर ---
ये रौब चाम दाम का,
न काम का न धाम का।
स्वनाम धन्य व्याक्ति भी
रहा न किसी नाम का।
गरूर गर्व मिट गए
शून्य में समिट गए
जो पहलवान पिट गए
उन्हें नहीं लड़ाएंगे।। जो दिन ये गुजर ---
फर्ज अभी बाकी है।
मर्ज अभी बाकी है।
प्यार के गुनाह का -
कर्ज अभी बाकी है।
जो दूर चले जाएंगे,
तो पास और आएंगे।
तब जख्म नये देने को
याद बन सताएंगे। जो दिन ये गुजर ---
यदुराज
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