लो हो गई शाम!
गर्वित दिन ढल गया
समय का पहिया कुचल कर निकल गया
धूप का अहंकार
हो गया तार-तार
धुंधलके ने आ घेरा
अकृतज्ञ दुनिया ने
अपने से मुंह फेरा
पूरब के राजा का
ऐसा बजा बाजा
कि गुरुता का भान गया
आदर सम्मान गया
माया भी न मिल पाई
न ही मिले राम
लो हो गई शाम!
आगे अँधियारा है
पीछे हैं यादें
शिकवों के झुंड लगे
करने फरियादें
कौन सुने
कौन कहे
कितने हैं जुल्म सहे
दुखी व्योम जैसे हुआ
रक्त सा ललाम
लो हो गई शाम!
यदुराज
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