Wednesday, 7 January 2015

कर्ज

ये रंग के हजार दिन,

उमंग के हजार दिन,
ये भंग की तरंग में-
जिये हुए हजार दिन;

ये दिन बहुत सताएंगे,
हँसाएंगे,   रुलाएंगे।
जो दिन ये गुजर जाएंगे।
न लौट कभी पाएंगे।।

अमीर के, गरीब के,
जो खेल थे नसीब के
न कह सके न सुन सके
थे फलसफे करीब के।

जो हो चुका सो हो चुका।
‘विगत’ स्वरूप खो चुका।
जो आ रहा,  बुला रहा,
गले  उसे  लगाएंगे।। जो दिन ये गुजर ---

ये रौब चाम दाम का,
न काम का न धाम का।
स्वनाम धन्य व्याक्ति भी
रहा न किसी नाम का।

गरूर गर्व मिट गए
शून्य में समिट गए
जो पहलवान पिट गए
उन्हें नहीं लड़ाएंगे।। जो दिन ये गुजर ---

फर्ज अभी बाकी है।
मर्ज अभी बाकी है।
प्यार के गुनाह का -
कर्ज अभी बाकी है।

जो दूर चले जाएंगे,
तो पास और आएंगे।
तब जख्म नये देने को
याद बन सताएंगे। जो दिन ये गुजर ---



यदुराज 

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