Sunday, 11 January 2015

मेरा अजीज़



चाहत का मेरे दिल में दरिया जहाँं पे बहता।
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

तनहाइयों की जिल्लत, रुसवाइयों के फिकरे,
गुरबत के लाख शिकवे, खामोश हो के सहता।
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

तू ने न खोज पाई, इस दर्द की दवाई,
बहरे हकीम से यों गूंगा मरीज कहता।
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

फुफकारती नजर को, दुतकारती फजर को,
नुस्खा-ए-बेअसर को कैसे लजीज कहता?
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

सेहत सकून होते, अरमा जुनून होते,
तो तेरी बेरुखी को बेशक तमीज कहता।
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

जुमले बहुत बनाए, नुकते सभी लगाए,
वो बात कह न पाए, जो हर रकीब कहता।
हरदम वहीं कहीं पर मेरा अजीज रहता।

यदुराज
कानपुर

11 जनवरी 2015

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