Sunday, 18 January 2015

सुई और भाला


सुई और भाला



उसने भोंका भाला,
सह्य था,
सह गया,
मैंने हँस कर टाला।
उससे मुझे इसी की थी आशा।
फिर क्यों करता तमाशा?
उसकी प्रतिशोधी भाले की धार,
न सकी मुझे मार,
मैं फूलता-फलता गया,
न रुका,
न झुका,
बस, अपनी राह  चलता गया।


मगर तुमने-
भाला नहीं,
एक छोटी सी सुई चुभोई,
असह्य पीड़ा हुई,
आत्मा रोई।
सारा शरीर निढाल हो गया,
जैसे सब कुछ जाता रहा,
बुरा हाल हो गया।


दुश्मन का भाला
जख्मी तो कर गया,
पर दुश्मनी का कर्ज उतर गया।
पर तुम्हारी सुई,
अत्यंत घातक साबित हुई,
रोम-रोम जल उठा,
दिल-दिमाग गल उठा,
आँखें सूनी हो गईं,
भावनाएं खो गईं,
दोनों होठ सिल गए,
और तुम -
पास से  छिटक कर
दूर निकल गए।








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