Saturday, 29 June 2013

मच्छर (थप्पड़ पड़ा मर गया. बिना कष्ट तर गया.)

मच्छर


गाल पर आ बैठा

खून पीने के लिए,
रही होगी चाहत-
और जीने के लिए.
थप्पड़ पड़ा मर गया.
बिना कष्ट तर गया.

उसे-
न रोगों ने जकड़ा,
न खटिया ने पकड़ा,
न हाथ-पाँव रगड़े,
न घाव हुए तगड़े,
न खांसी, न खों खों,
न कोई लबड़घोंघों,
न दिल ने दिया झटका,
न सिर कहीं पटका,
न दौरे की दहशत,
न मिर्गी मशक्कत,
न लकवे ने मारा,
न लुटा-पिटा-हारा,
न साँसों की गड़बड़,
न प्राणों की भगदड़,
न घिसटा, न रोया,
न आपा ही खोया,
बस, पड़ा एक थप्पड़,
और ख़त्म सब पच्चड़!
प्रश्न है की क्या हुआ?
अच्छा या बुरा हुआ?


यदुराज सिंह बैस




Friday, 28 June 2013

कौन है जो पास आता जा रहा है,




               कौन है?




कौन है जो  पास  आता जा रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा रहा है.

जिंदगी से  यह  बियावाँ  हट रहा है,
धुंद का साम्राज्य भी अब छट रहा है,
स्वांस तक अवरुद्ध थी जिसकी वजह से-
बेबसी  का  वही  बंधन  कट रहा है.

अभी तक ठगता रहा हर मोड़ पर जो,
वह समय भी गले मिलाने आ रहा है.
कौन है जो  पास  आता जा  रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा  रहा है.


मौन के  उस छोर  से बंसी बजता,
कंटकों की राह पर कलियाँ सजाता,
कौन है  जो चाँदनी  ले  हाथ में-
बादलों की ओट से  जादू दिखाता.

कौंधियाती आँख की पुतली के पीछे
सुनहरे  सपने  सजाता  जा रहा है
कौन है जो  पास  आता जा रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा रहा है.


वह ख़ुशी-आनंद भी, अधिकार भी है,
वह नदी की धार भी, पतवार भी है,
अगम जल के भंवर का आधार भी है-
डूबने के  बाद का  उपहार  भी है.

उस ख़ुशी को व्यक्त करती मूक भाषा
में  लिखी  गीता  सुनाता  जा रहा है.
कौन है जो  पास  आता   जा रहा है,
प्यार की धुन  गुनगुनाता  जा रहा है.



               यदुराज सिंह बैस




यदुराज सिंह बैस

उद्बोधन हार हुई तो बढ़ इसका सत्कार करो A Poem of Encouragement




उद्बोधन




हार हुई तो बढ़ इसका सत्कार करो
भिड़ने वाले ही तो इसको पाते हैं .
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


हार जीत  तो भिड़ने का  परिणाम है,
इसमें  भई रोने धोने का क्या काम है.
गिर कर ही उठने की ताकत मिलती है
क्रियाशील  के  आगे  कहाँ  विराम है.

चोटें तो  लगती ही रहती हैं  साथी
जब बढ़ने वाले आगे कदम बढ़ाते हैं.
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


भिड़ने वालों की यह धैर्य परीक्षा है,
हार समझ कर इसे न धोका खा जाना.
ठोकरें राह को परिभाषित करती हैं,
सरल नहीं होता मंजिल का पाजाना.

अवरोधों  का  डर  न  उनको  होता  है,
जो आगे बढ़ना अपना लक्ष्य बनाते हैं.
            जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी उठने वाले गिर जाते हैं.


समय बड़ा ही  निर्मम  होता है साथी
दया दिखाना इसे न बिलकुल भाता है
छुईमुई   के   दुर्बल   पत्तों  से   पूछो -
जिन पर भी पतझड़ का मौसम आता है

               उन गाँधी की भी छाती में बिधती  गोली
               जो सत्य अहिंसा प्रेम शांति सिखलाते हैं
जो गिरा हुआ है स्वयं, गिरेगा क्या आगे
हाँ, कभी कभी  उठने वाले  गिर  जाते हैं.


                        यदुराज सिंह बैस







Thursday, 27 June 2013

अजीव कहानी




अजीव कहानी


नानी!
तेरी कहानी
बड़ी ही विचित्र है,
इसमें -
न कोई शत्रु है,
न कोई मित्र है,
कागज़ के गंध हीन फूल,
लोगों के सीने में शूल,
धरती वीरान,
शंकित इंसान,
तपती हुई रेत,
सूखे हुए खेत,
कहीं नहीं पानी,
यह भी है कोई कहानी?

भाषा समर्थ नहीं.
शब्द हैं अर्थ नहीं.

चारों ओर-
शोर ही शोर,
भीड़ भरे रास्ते,
किसके वास्ते-
उद्वेलित हो रहे?
आपा खो रहे?
न कोई राजा,
न कोई रानी,
नानी,
समझ में न आती
ऎसी कहानी.

बात यों भी अजीव है,
कि हर किसी के कंधे पर-
लदी एक सलीब है,
उल्लुओं की बस्ती है,
मौत यहाँ सस्ती है,
कहाँ गयी भेड़-
जिसे भेड़ियों के झुन्ड
रहे हैं खदेड़?
न कोई ज्ञानी,
न अज्ञानी,
कैसी अजीब कहानी?
नानी?


यदुराज सिंह 


यदुराज सिंह


Wednesday, 26 June 2013

कौन है जो पास आता जा रहा है,




               कौन है?




कौन है जो  पास  आता जा रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा रहा है.

जिंदगी से  यह  बियावाँ  हट रहा है,
धुंद का साम्राज्य भी अब छट रहा है,
स्वांस तक अवरुद्ध थी जिसकी वजह से-
बेबसी  का  वही  बंधन  कट रहा है.

अभी तक ठगता रहा हर मोड़ पर जो,
वह समय भी गले मिलने आ रहा है.
कौन है जो  पास  आता जा  रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा  रहा है.


मौन के  उस छोर  से बंसी बजता,
कंटकों की राह पर कलियाँ सजाता,
कौन है  जो चाँदनी  ले  हाथ में-
बादलों की ओट से  जादू दिखाता.

कौंधियाती आँख की पुतली के पीछे
सुनहरे  सपने  सजाता  जा रहा है
कौन है जो  पास  आता जा रहा है,
प्यार की धुन गुनगुनाता जा रहा है.


वह ख़ुशी-आनंद भी, अधिकार भी है,
वह नदी की धार भी, पतवार भी है,
अगम जल के भंवर का आधार भी है-
डूबने के  बाद का  उपहार  भी है.

उस ख़ुशी को व्यक्त करती मूक भाषा
में  लिखी  गीता  सुनाता  जा रहा है.
कौन है जो  पास  आता   जा रहा है,
प्यार की धुन  गुनगुनाता  जा रहा है.



               यदुराज सिंह बैस




यदुराज सिंह बैस

Tuesday, 25 June 2013

कहानी THE STORY OF LIFE

कहानी

 


इधर बुढ़ापा,
उधर जवानी,
इसी के बीच
सारी कहानी.

तुम हो रहे बड़े,
अपने पैरों पर खड़े,
और मैं बूढ़ा
जो उत्तरोत्तर
जीर्ण-जर्जर हो रहा,
योवन का सारा सार
खो रहा.

तुम्हें बढ़ता देखना
सुहाता है,
तुम्हारा विकास,
तुम्हारा तेज,
मन को भाता है,
पर मेरा तजुरबा
कुछ दीपों के जरिए
कुछ समझाता है,
एक अलग कहानी सुनाता है,
और मुझे हर समय डराता है.

एक रात
पास-पास
दो दीये वले,
पर जिसकी लौ तेज रही
सारे शलभ
उसी की ओर चले,
उसी पर मंडराए,
उसी में जा जले.

पर ये दिव्यता के चोर,
मूर्ख बरजोर,
जब बिफर कर आते हैं,
लौ पर छाजाते हैं,
तो सबसे पहले
तेज दीप्ति वाला
दीप ही बुझाते हैं.

यही देख कर
लगता है डर.

दूसरी ओर
एक दीप
जिसमें भरा है लबालब तेल,
और दूसरा,
जिसके तेल का समाप्ति पर है खेल,
दोनों पर ही
समय का शिकंजा है,
जो निरंतर जकड़ता
बेरहम पंजा है.

तुम्हारा तेज
पराक्रम के शिखर की ओर,
थामें पौरुष की सबल डोर,
जब आगे बढेगा,
तब मेरा सूरज
शनैः-शनैः ढलेगा.
और
अँधेरे या शून्यता की छाया गढ़ेगा.
पर ऐसा सुना है कि
तब भी
वह तत्व,
जो अजन्मा है,
अक्षय है,
अविनाशी है,
सलामत रहेगा.

क्या पता-
फिर किसी फूल या कांटे के रूप में,
यह रूह फिर आए,
और बिफराए मौसमों की मार सहे,
या
फिर किन्ही आँखों में आंसू बन छलके,
या किसी मेहनतकश का स्वेद बन बहे,
या एक नयी कहानी बने,
जिसको समय
अपने निरंकुश लहजे में-
लिखे,
पढ़े,
या कहे.




यदुराज सिंह बैस

Monday, 24 June 2013

तुम मुझसे नफ़रत करो! STORY OF LOVE VS. HATE ( नफ़रत )

नफ़रत



प्यार नहीं सौम्य!
नफ़रत.
तुम मुझसे नफ़रत करो!

अगर तुम प्यार करोगे,
तो
तुम्हारे साथ होने का
भरम होगा,
अपनी सामर्थ्य पर भरोसा
उत्तरोत्तर कम होगा,
हाथ हर वक्त
अन्य हाथों को तरसेंगे,
परिणामतः निराशा होगी
और आँखों से मेघ बरसेंगे.
जीवन की जंग में
अपनी लड़ाई
जब खुद न लड़ पाऊँगा,
जब तुम न साथ होओगे,
तो क्या करूंगा,
कहाँ जाऊंगा?
प्यार में विछोह की
संभावना परम होगी,
और अनिवार्यतः
आसरे की उम्मीदें

हर दम बेदम होंगी,
तो दिल भरा होगा
तेरे प्यार के आश्वासन से,
वह कैसे निपट पाएगा
उस निरीह एकाकीपन से?

पर तुम्हारी नफ़रत
चुनौती देगी लड़ने की
घने दुर्गम बनों में
मार्ग बना चलने की
पीछे मुड़कर देखने की
नौबत न आएगी तब,
अपितु हिम्मत होगी -

आगे ही आगे बढ़ने की.

कछुए का सिर है
ये प्यार तो,
पता नहीं कब बाहर
कब अन्दर,
पर नफ़रत तो हर हाल नफ़रत है,
मुंह छिपाना इसकी न फितरत है,
जो कुछ है
खुला खेल है
छाती ठोक कर,
और डंके की चोट पर.
न कोई चोंचला,

न ही दिखावा,
हर समय है
बस दहकता हुआ लावा.
इसलिए नफ़रत है
हर हाल पूरी खरी,
हर वक़्त चेतावनी भरी.

हजारों गिले-शिकवे,
लाखों शिकायतें,
अशंख्य अपेक्षाएं,
ढेरों उम्मीदें,
सतत परीक्षाएं,
ये ही तो प्यार की किताब के सफे हैं,

जिन पर उकरे
ये प्यार के अजीव फलसफे हैं.
मुझे नहीं चाहिए ऐसा प्यार.

प्यार में-
वियोग है,
विछोह है,
धोका है,
द्रोह-विद्रोह है,
प्रायः परकीयता है,
रकीब होने की
सुदृढ़ संभावना है,

जो अपने आप में
एक दुखती कथा है,
प्यार में उलाहने हैं,
चुभते हुए ताने हैं,
तारे तोड़ लाने के वादे हैं,
या मायावी तराने हैं,
बिंदास प्रलोभन हैं,
और अक्सर ही
टूटे हुए दिल हैं
और बेचैन मन हैं.


प्यार सम्मोहन है,
सुध-बुध विसराता है,
अपनी मन-मानी कराता है
करके अचेत,
जब कि नफ़रत
सिर पर तना डंडा है,
चेतावनी का झंडा है,
सदा करता सचेत.

प्यार को तो
जो हर पल
कुर्बानियों की आग में तपना है,

तिल-तिल कर पल छिन जीना है
मरना है,
और अंततः
नफ़रत में हि बदलना है,
जबकि
नफ़रत का रूप
सदा एक हि रहता है-
नफ़रत.

इसलिए सौम्य!
तुम प्यार का बेहूदा भरम न भरो,
अभी से नफ़रत करो.


प्यार तो आरंभिक चोंचला है,
प्यार भावनात्मक ढकोसला है,
अहं से संपोषित दुनिया में-
प्यार बस दिखावा है,
स्वार्थी छलावा है,
खोखला है.

जब कि नफ़रत-
लौकिकता के अंत का सत्य है,
और प्यार का ही
परिवर्तित,

परिष्कृत रूप है,
और प्रायः
हर प्यार का अंतिम लक्ष्य है.

नफरत अस्तित्व की ज़रूरत है.
गौर से देखो तो पाओ गे-
कि हर दर्पण में प्रतिविम्बित
नफ़रत ही स्पर्धा की सूरत है,
इसलिए सौम्य!
तुम अंत का यथार्थ चुनो,
और प्यार का अभिनय छोड़कर

नफरत के तानें बुनो.

प्यार तो छलिया है,
धोका है,
दिखावों-आडम्बरों का खोका है,
मन का यह बड़पेटू बच्चा-
हर समय भूखा ही रहता है.
ऐसा खेत
जो भरपूर खाद पानी मिलने पर भी,
बंजर ही रहता है
सूखा ही रहता है.


प्यार तो भावना का गिरगिट है,
पल-पल रंग बालता है,
प्यार एक मोहक छलावा है
जो रूप बदल-बदल कर छलता है.

प्यार ऐसा परजीवी है
जो खुद पर नहीं,
अन्य पर जीता है,
और चटकारे लेते हुए
एक-दूजे का खून पीता है.

अस्तु सौम्य!

मत करो ढोंग इस प्यार का.

नफ़रत की राह सीधी है,
नफ़रत की बात सच्ची है,
नफ़रत में न कोई इच्छा है,
और न ही कोई
अपेक्षा-परीक्षा है.

इसलिए सौम्य,
तुम मुझसे नफ़रत करो,
फिर तुम्हारी राह तुम्हारी होगी,
और मेरी

सिर्फ मेरी.
मैं अपने में खुश रहूँगा,
तुम अपने में,
न किसी का दिल टूटेगा,
न ही भाग्य फूटेगा,
न झंझट,
न झमेला,
बस नफ़रत
सौम्य,
नफ़रत,


यदुराज सिंह बैस.