मच्छर
गाल पर आ बैठा
खून पीने के लिए,
रही होगी चाहत-
और जीने के लिए.
थप्पड़ पड़ा मर
गया.
बिना कष्ट तर
गया.
उसे-
न रोगों ने जकड़ा,
न खटिया ने पकड़ा,
न हाथ-पाँव रगड़े,
न घाव हुए तगड़े,
न खांसी, न खों खों,
न कोई लबड़घोंघों,
न दिल ने दिया झटका,
न सिर कहीं पटका,
न दौरे की दहशत,
न मिर्गी मशक्कत,
न लकवे ने मारा,
न लुटा-पिटा-हारा,
न साँसों की गड़बड़,
न प्राणों की भगदड़,
न घिसटा, न रोया,
न आपा ही खोया,
बस, पड़ा एक थप्पड़,
और ख़त्म सब पच्चड़!
प्रश्न है की क्या हुआ?
अच्छा या बुरा हुआ?
यदुराज सिंह बैस